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पराग इनीशिएटिव ऑफ़ टाटा ट्रस्ट द्वारा सी एल सी कोर्स संचालित किया जा रहा है जो कि निश्चय ही काबिले तारीफ है इस कोर्स से जुड़ने पर लगा की पुस्तकालय एक व्यक्ति द्वारा संचालित प्रोजेक्ट ना होकर शिक्षकों बच्चों और समुदाय की भागीदारी से चलने वाली प्रक्रिया है। वर्तमान में पाठ्यक्रम के इतर पुस्तक संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे समय में पराग टीम द्वारा इस कोर्स को लेकर आना पुस्तकालयों के लिए एक संजीवनी साबित होगा। इस कोर्स के द्वारा जो आयाम व तकनीकी बताई गई है उनकी मदद से हम छात्रों को पुस्तकालय से जोड़ सकते हैं। इस कोर्स का हिस्सा बनने से पहले पुस्तकालय मैं छात्र यदा–कदा ही आते थे। यदि पुस्तकालय में आ भी जाएं तो कहानी कविता एवं बाल साहित्य की पुस्तकों मैं रुचि ना के बराबर थी।
इस कोर्स का हिस्सा बनने के बाद मैंने पुस्तकालय में नए प्रयोग किए पुस्तकालय में खेल एवं गतिविधियों द्वारा पुस्तकालय का वातावरण ही बदल दिया जो बच्चे किताबों से कतराते थे वह आज किताबें ढूंढ- ढूंढ कर पढ़ रहे हैं। उन्हें पढ़ने में मजा आने लगा है। लेकिन इन सबसे पहले कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा क्योंकि बच्चे पाठ्यपुस्तक तक ही सीमित उन्हें साहित्य के प्रति कोई रुझान नहीं था। लेकिन मैं थोड़े प्रयासों से उन्हें पुस्तकालय में ले जाता और उनके साथ खेल, मौखिक एवं लिखित गतिविधियां करता रहता। मैंने देखा कि बच्चों को धीरे धीरे मजा आने लगा है। मैंने पुस्तकालय में अलग से एक बच्चों का कॉर्नर स्थापित कर दिया जिससे बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का जन्म हुआ और सभी विद्यार्थी बढ़–चढ़कर हिस्सा लेने लगे और एक समय ऐसा होता है जब मैं विद्यालय कार्य में व्यस्त रहने के कारण पुस्तकालय नहीं जा पाता तो छात्र मुझे पूरे स्कूल में ढूंढते हुए मेरे पास आते हैं और बोलते हैं- “सर पुस्तकालय में कब लेकर चलेंगे”।
इस प्रकार छात्रों द्वारा पुस्तकालय के प्रति यह एक सकारात्मक कदम था इसी कड़ी में मैंने बच्चों को साहित्य की विधाओं से भी परिचित कराया इसी क्रम में बाल साक्षरता को सींचने का मौका भी मिला। मैं यहां पर अपने आप को एक प्रशिक्षक के तौर पर देखता हूं और मेरी सोच को विस्तार देता हूं मुझे यदि मौका मिलता है तो मैं पूरे प्रदेश में छात्रों में पाठ्यक्रम के इतर पढ़ने की संस्कृति पुनः स्थापित कर दूंगा, जो कि वर्तमान में लगभग लुप्त हो रही है।
यह हमारी विडंबना ही है कि हम छात्रों में पढ़ने की आदत का विकास न कर पाए। मैं अपने स्कूल के साथ साथ अपने जिले एवं राज्य के शिक्षकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करूंगा कि वह पुस्तकालय से जुड़ते हुए नए आयाम स्थापित करें। साथ ही उनका दृष्टिकोण विकसित करूंगा ताकि उनको इस पुनीत कार्य में आनंद आए ना कि बोझ लगने लगे या थोपा हुआ कार्य महसूस ना हो। मैं रिसोर्स पर्सन के रूप में यह अपेक्षा करता हूं की पूरे राज्य की सभी स्कूलों में छात्र पाठ्यपुस्तक के अलावा पढ़ते हुए नजर आए साथ ही साहित्य का रसपान करते हुए पुस्तकालय के नियमित पाठक बनें। पुस्तकालय ज्ञान का भंडार है। छात्र इस ज्ञान रूपी भंडार का जितना अधिक उपयोग करेंगे वैसे वैसे ही उनकी समझ विकसित होती जाएगी इस प्रकार छात्र जीवन के साथ संबंध देख पाएंगे इस प्रकार छात्रों का एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाएगा जो साहित्य के साथ अपना संबंध जोड़ पाएंगे। सारांश यह है कि पुस्तकालयाध्यक्ष के साथ-साथ प्रधानाचार्य शिक्षक एवं समुदाय की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे छात्रों का मार्गदर्शन करें जिससे हमारे समाज में पढ़ने की संस्कृति पुनर्जीवित हो जाए!
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